कुछ बूंदों ने मिल कर
मेरी हथेली पर
छोटी सी एक झील बनाई
जिस में
पूरे चाँद का अक्स उतर आया
वहशी मन ने उकसाया
चाँद को मैं ने क़ैद कर लिया
मुट्ठी में
सारा पानी फिसल गया
चाँद
मेरे क़ब्ज़े से निकल गया
नज़्म
हवस
सुबोध लाल साक़ी
नज़्म
सुबोध लाल साक़ी
कुछ बूंदों ने मिल कर
मेरी हथेली पर
छोटी सी एक झील बनाई
जिस में
पूरे चाँद का अक्स उतर आया
वहशी मन ने उकसाया
चाँद को मैं ने क़ैद कर लिया
मुट्ठी में
सारा पानी फिसल गया
चाँद
मेरे क़ब्ज़े से निकल गया