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हवस | शाही शायरी
hawas

नज़्म

हवस

सुबोध लाल साक़ी

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कुछ बूंदों ने मिल कर
मेरी हथेली पर

छोटी सी एक झील बनाई
जिस में

पूरे चाँद का अक्स उतर आया
वहशी मन ने उकसाया

चाँद को मैं ने क़ैद कर लिया
मुट्ठी में

सारा पानी फिसल गया
चाँद

मेरे क़ब्ज़े से निकल गया