हसीन दुनिया उजड़ गई तो अगर कहीं ये बिगड़ गई तो
गुमाँ से आगे निकल गई तो गुमाँ से आगे गुमान कर लो
उठाओ पर्दा और देख लो ख़ुद ज़मीं-फ़रोशी के रूप कितने
नक़ाब-पोशों की भीड़ में सब हमारे कल के ये सौदागर हैं
उन ही की हिर्स-ओ-हवस के बाइ'स हमारी दुनिया उजड़ रही है
गर्म हवाओं में घिर रही है
बदलते मौसम का इस्तिआरा ज़मीं को ताराज कर रहा है
पहाड़-ओ-दरिया निगलने वाले शजर-फ़रोशी में लग गए हैं
वो ख़ुशनुमा गीत गाते पंछी अब अपने रस्ते बदल रहे हैं
शिकारी आँखों से बच रहे हैं
ये दरिया गर्मी से जल रहे हैं पहाड़ करवट बदल रहे हैं
ज़मीं का ज़ेवर उतर रहा है और जंगलों में ग़दर मचा है
सुलगते सहरा बसाने वालो निराली दुनिया सजाने वालो
समुंदरों पर शहर बनाओ फ़लक पे तुम कहकशाँ सजाओ जहान-ए-नौ ख़ूब-तर बसाओ
मगर ज़मीं को न भूल जाना लुटा रही है जो आब-ओ-दाना
हसीन दुनिया उजड़ गई तो अगर कहीं ये बिगड़ गई तो गुमाँ से आगे निकल गई तो
न तुम रहोगे न हम रहेंगे न मौसमों के ये रंग रहेंगे
नज़्म
हसीन दुनिया उजड़ गई तो
रेहान अल्वी