हरी-भरी इक शाख़-ए-बदन पर
मेरे लबों के लम्स से फूटे
ऐसे ऐसे फूल
सादा से मल्बूस में भी वो सातों रंग खिलाती है
अपने हुस्न की तेज़ महक से
लोगों के अम्बोह में बैठी यूँ घबरा सी जाती है
जैसे बातें करते कोई!
जाता है कुछ भूल
मेरे लबों के लम्स से फूटे
हरी-भरी एक शाख़-ए-बदन पर
कैसे कैसे फूल

नज़्म
हरी-भरी इक शाख़-ए-बदन पर
अमजद इस्लाम अमजद