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हमदर्द | शाही शायरी
hamdard

नज़्म

हमदर्द

अहमद फ़राज़

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ऐ दिल उन आँखों पर न जा
जिन में वफ़ूर-ए-रंज से

कुछ देर को तेरे लिए
आँसू अगर लहरा गए

ये चंद लम्हों की चमक
जो तुझ को पागल कर गई

इन जुगनुओं के नूर से
चमकी है कब वो ज़िंदगी

जिस के मुक़द्दर में रही
सुब्ह-ए-तलब से तीरगी

किस सोच में गुम-सुम है तू
ऐ बे-ख़बर नादाँ न बन

तेरी फ़सुर्दा रूह को
चाहत के काँटों की तलब

और उस के दामन में फ़क़त
हमदर्दियों के फूल हैं