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हमारे लिए तो यही है! | शाही शायरी
hamare liye to yahi hai!

नज़्म

हमारे लिए तो यही है!

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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हमारे लिए तो यही है कि
तुम्हारा जुलूस जब शाहराह से गुज़रे

तो तुम अपनी उँगलियों की तितलियाँ हमारी जानिब उड़ाओ
अपनी उँगलियों को होंटों से छूते हुए

हमारी जानिब एक बोसे की सूरत उछालो
जिसे समेटने के लिए हम एक साथ लपकें

हमारे लिए तो यही है कि
तुम्हारा लिबास हम पर मेहरबान हो जाए

तुम अपनी बग्घी से उतरते हुए
अपने पाएँचे उँगलियों से समेट लो

और तुम्हारा सैंडिल
तुम्हारे टख़ने की पहरे-दारी से ग़ाफ़िल हो जाए

या हवा तुम्हारे बालों को लहरा दे
और तुम उन्हें समेटने की कोशिश में

अपना निस्फ़ बाज़ू बरहना कर डालो
या आसमान पर कोई परिंदा देखते हुए

तुम्हारे होंटों पर आने वाली मुस्कुराहट
हमारी आँखों से इत्तिफ़ाक़ी मुलाक़ात कर ले