वो लम्हा
वो पुर-शौक़ ओ पुर-सोज़ लम्हा
जो हमराह तेरे गुज़ारा था मैं ने
वही ज़िंदगी था
और अब ये जो मुद्दत से है आमद-ओ-शुद नफ़स की
उसी एक लम्हा की क़ीमत है शायद
नज़्म
हासिल
इफ़्तिख़ार आज़मी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आज़मी
वो लम्हा
वो पुर-शौक़ ओ पुर-सोज़ लम्हा
जो हमराह तेरे गुज़ारा था मैं ने
वही ज़िंदगी था
और अब ये जो मुद्दत से है आमद-ओ-शुद नफ़स की
उसी एक लम्हा की क़ीमत है शायद