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हासिल | शाही शायरी
hasil

नज़्म

हासिल

इफ़्तिख़ार आज़मी

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वो लम्हा
वो पुर-शौक़ ओ पुर-सोज़ लम्हा

जो हमराह तेरे गुज़ारा था मैं ने
वही ज़िंदगी था

और अब ये जो मुद्दत से है आमद-ओ-शुद नफ़स की
उसी एक लम्हा की क़ीमत है शायद