मुसाहिब-ए-शाह से कहो कि 
फ़क़ीह-ए-आज़म भी आज तस्दीक़ कर गए हैं 
कि फ़स्ल फिर से गुनाहगारों की पक गई है 
हुज़ूर की जुम्बिश-ए-नज़र के 
तमाम जल्लाद मुंतज़िर हैं 
कि कौन सी हद जनाब जारी करें 
तो तामील-ए-बंदगी हो 
कहाँ पे सर और कहाँ पे दस्तार उतारना अहसन-उल-अमल है 
कहाँ पे हाथों कहाँ ज़बानों को क़त्अ कीजिए 
कहाँ पे दरवाज़ा रिज़्क़ का बंद करना होगा 
कहाँ पे आसाइशों की भूखों को मार दीजे 
कहाँ बटेगी लुआन की छूट 
और कहाँ पर 
रज्म के अहकाम जारी होंगे 
कहाँ पे नौ साला बच्चियां चहल साला मर्दों के साथ 
संगीन में पिरोने का हुक्म होगा 
कहाँ पे इक़बाली मुलज़िमों को 
किसी तरह शक का फ़ाएदा हो 
कहाँ पे मासूम दार पर खींचना पड़ेगा 
हुज़ूर अहकाम जो भी जारी करेंगे 
फ़क़त इल्तिजा ये होगी 
कि अपने इरशाद-ए-आलिया को 
ज़बानी रखें 
वगरना 
कानूनी उलझनें हैं!
        नज़्म
फ़रोग़ फ़रख़-ज़ाद के लिए एक नज़्म
परवीन शाकिर

