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फ़न पारा | शाही शायरी
fan para

नज़्म

फ़न पारा

जौन एलिया

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ये किताबों की सफ़-ब-सफ़ जिल्दें
काग़ज़ों का फ़ुज़ूल इस्ती'माल

रौशनाई का शानदार इसराफ़
सीधे सीधे से कुछ सियह धब्बे

जिन की तौजीह आज तक न हुई
चंद ख़ुश-ज़ौक़ कम-नसीबों ने

बसर औक़ात के लिए शायद
ये लकीरें बिखेर डाली हैं

कितनी ही बे-क़ुसूर नस्लों ने
इन को पढ़ने के जुर्म में ता-उम्र

ले के कश्कूल-ए-इल्म-ओ-हिक्मत-ओ-फ़न
कू-ब-कू जाँ की भीक माँगी है

आह ये वक़्त का अज़ाब-ए-अलीम
वक़्त ख़ल्लाक़ बे-शुऊर क़दीम

सारी तारीफ़ें उन अँधेरों की
जिन में परतव न कोई परछाईं

आह ये ज़िंदगी की तन्हाई
सोचना और सोचते रहना

चंद मासूम पागलों की सज़ा
आज मैं ने भी सोच रक्खा है

वक़्त से इंतिक़ाम लेने को
यूँही ता-शाम सादे काग़ज़ पर

टेढ़े टेढ़े ख़ुतूत खींचे जाएँ