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ईमेल | शाही शायरी
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नज़्म

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ज़ीशान साहिल

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तुम से मिल के
ज़िंदगी अच्छी लगी

दिल को लेकिन
इस का अंदाज़ा नहीं

ख़्वाब से बाहर निकलने के लिए
मेरे घर में कोई दरवाज़ा नहीं

एक खिड़की में तुम्हारी याद है
और इक दीवार पे वो आईना

जिस में तंहाई नज़र आती नहीं
फ़्रेम में तस्वीर

कोई गीत दोहराती नहीं
मेज़ पे रक्खी है

नज़्मों की किताब
फूल इक गुल-दान में

ख़ामोश हैं
सुब्ह के अख़बार की कोई ख़बर

तुम कहाँ हो
ये बता सकती नहीं

तुम जहाँ हो अब वहाँ शायद
मिरी आवाज़ जा सकती नहीं

अब्र में डूबे सितारे
क्यूँ हवा को

शाम के रंगों से भर सकते नहीं?
क्या ये सच है

हम ख़ुशी ईमेल कर सकते नहीं?