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एक सूरमा के नाम | शाही शायरी
ek surma ke nam

नज़्म

एक सूरमा के नाम

अहमद जावेद

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आने वाले दिन के आख़िर पर
सूरज टूटी हुई ढाल की तरह

उफ़ुक़ पर चस्पाँ एक हुनूत किया हुआ सर
किसी सूरमा का

जो वक़्त से हार गया!
बगूले ऐसी हवा और एक रंगा हुआ घोड़ा

लहू-लुहान दिल हमेशा घड़ लेता है एक दुनिया अपने लिए
मोहब्बत कहीं ज़ियादा सफ़्फ़ाक है नफ़रत से

क्यूँ-कि ये अछूती और उजली है
उस सितारे की तरह

जो कंदा है एक मुक़द्दस क़ुर्बां-गाह की छत पर
ज़िंदगी! हश्त!

हाँ मगर मौत एक पुल है शिकस्ता और चरचराता
अबदियत के बोझ-तले

कहाँ है तुम्हारा रथ जो
तारीख़ से ज़ियादा तेज़ चलता है

और कहाँ है तुम्हारा झंडा
जिस का साया

ज़मीन पर नहीं पड़ता