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एक सौ बीस दिन | शाही शायरी
ek sau bis din

नज़्म

एक सौ बीस दिन

फरीहा नक़वी

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हम दिसम्बर में शायद मिले थे कहीं..!!
जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रैल....

और अब मई आ गया.....
एक सौ बीस दिन....

एक सौ बीस सदियाँ.... गुज़र भी गईं
तुम भी जीते रहे,

मैं भी जीती रही....
ख़्वाहिशों की सुलगती हुई रेत पर

ज़िंदगानी दबे पाँव चलती रही
मैं झुलसती रही....

मैं.... झुलसती.... रही
ख़ैर,

छोड़ो ये सब!
तुम बताओ तुम्हें क्या हुआ?

क्यूँ परेशान हो????