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एक नज़्म | शाही शायरी
ek nazm

नज़्म

एक नज़्म

क़ाज़ी सलीम

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जब मैं ने तुम्हारा जिस्म छुआ
मिरे अंदर कोई और था जिस ने और किसी का जिस्म छुआ

औरों की बेताब छुवन में
फिर मुझ जैसा

फिर तुम जैसा
कोई और था जिस ने और किसी का जिस्म छुआ