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एक नज़्म जंगलों के नाम | शाही शायरी
ek nazm jangalon ke nam

नज़्म

एक नज़्म जंगलों के नाम

फ़ारूक़ नाज़की

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ज़मीन शो'ले उगल रही है
फ़ज़ा से तेज़ाब गिर रहा है

ज़मीन अग्नी पे लोटती है
हवाएँ चेहरा बिगाड़ती हैं

सुना तो था
आज देखते हैं

यहाँ हवाएँ हैं नार-सीरत
अज़ल से ले कर अबद तलक बे-क़रार होंगी

हमारी रूहें
जन्म जन्म तक

भटक भटक कर
फ़ना फ़ना बे-कराँ तबाही का नाम ले कर

न पेड़ होंगे
न क़ुमरियों के सुरीले नग़्मे

शिवालिका पर न कोई जोगी
सदा-ए-जश्न-ए-बहार देगा

कोई क़लंदर न कोई रूमी
नए सुरों की तलाश करने

किसी नियस्तां में जा रुकेगा