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एक नज़्म | शाही शायरी
ek nazm

नज़्म

एक नज़्म

अनीस नागी

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मिरा मुक़द्दर अजीब है
मैं तवील रातों का वो दिया हूँ

जो इक लगन से
ज़मीर-ए-मुजरिम के ख़्वाब में कपकपा रहा हूँ

इसे मिलेगी नजात मुझ को पता नहीं है
मैं तीरगी का तज़ाद हूँ

और ज़मीर-ए-मुजरिम का ख़्वाब हूँ