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एक नज़्म | शाही शायरी
ek nazm

नज़्म

एक नज़्म

अब्दुर्रशीद

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शब के फाटक से परे
मैं ने चुराए बोसे

जो तेरे ज़ानू की रेहल पे ठिटके
धान के ख़ेमे में इक तू था

या पानी का लगातार ख़रोश
आख़िरी बार जवानी की किताब

दुख़्तर-ए-रज़ ने खोली