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एक मशवरा | शाही शायरी
ek mashwara

नज़्म

एक मशवरा

सबा इकराम

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मिरे गिर्द
अब लाल पीली दवाओं की

इन शीशियों से
न दीवार चुनने की

कोशिश करो
तुम हिसार-ए-दुआ में

मुझे क़ैद करने की ज़िद छोड़ दो
अब मिरे ज़ख़्म-ख़ुर्दा बदन की

न तुम सूइयों से
तबीबों की

पैवंद-कारी करो
अपनी पहचान की शक्ल

बिगड़ी हुई लग रही हो
तो मेरी

इक अच्छी सी तस्वीर
कमरे में तुम टाँग लो

मुझ को घर के
किसी अंधे कोने में अब डाल दो