कच्चा सा इक मकाँ कहीं आबादियों से दूर
छोटा सा एक हुज्रा फ़राज़-ए-मकान पर
सब्ज़े से झाँकती हुई खपरेल वाली छत
दीवार-ए-चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल
उतरी हुई पहाड़ पे बरसात की वो रात
कमरे में लालटैन की हल्की सी रौशनी
वादी में घूमता हुआ बारिश का जल-तरंग
साँसों में गूँजता हुआ इक अन-कही का भेद!
नज़्म
एक मंज़र
परवीन शाकिर