वादी की सब से लम्बी लड़की के जिस्म के सब मसामों से
रेशम से ज़्यादा मुलाएम और नर्म ख़मोशी में
घंटियों की आवाज़ें आ रही थीं
बरखा की उस नम-ज़दा रात में
जब उस के जिस्म पे क़ौस-ए-क़ुज़ह चमकी
तो घंटियाँ तेज़ तेज़ बजने लगीं
मिरे कानों में आहटें आ रही थीं
धुँद से भी नर्म और मुलाएम बादलों की दबे पाँव आहटें
वो जब रेशम के कच्चे तारों से बनी हुई
रात के फ़र्श पर लेटी
तो क़ौस-ए-क़ुज़ह और भी शोख़ और गर्म रंगों में ढलने लगी
वो सैंकड़ों रंगों से मुरत्तब-शुदा लड़की
रात गए तक गर्म रंगों में पिघलती गई
सुब्ह होने पर सूरज की पहली किरन
रौज़न से कमरे में दाख़िल हुई
तो उस के जिस्म से
रात की ख़्वाबीदा घंटियों की आवाज़ें सुन कर
और उस के जिस्म पे सोए हुए गर्म रंगों को देख कर
एक दम शरमा गई
वादी की सब से लम्बी लड़की
धुँद से भी नर्म और रेशम से मुलाएम
नज़्म
एक लम्बी काफ़िर लड़की
तबस्सुम काश्मीरी