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एक कुत्ता नज़्म | शाही शायरी
ek kutta nazm

नज़्म

एक कुत्ता नज़्म

साक़ी फ़ारुक़ी

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प्यारे
सात साल से

इस टेलीविज़न पर
हिज़-मास्टर्स-वॉइस के

मुंकसिर-मिज़ाज
और बुर्दबार कुत्ते की तरह

बे-नियाज़ और मुतमइन और बे-ख़बर
दम साधे बैठे हुए हो

तुम्हारे क़दमों के नीचे
एक हश्र बरपा है

जीता जीता लहू
टेलीविज़न की शिरयानों से

फूट फूट कर
बह निकला है

क़ालीन भीग गई है
सोफ़े तैर रहे हैं

मैं अपने लहू में डूब चला हूँ
मेरी मदद करो

भौंकते क्यूँ नहीं
कुत्ते कहीं के....