इस पे भूले हो कि हर दिल को कुचल डाला है
इस पे भूले हो कि हर गुल को मसल डाला है
और हर गोशा-ए-गुलज़ार में सन्नाटा है
किसी सीने में मगर एक फ़ुग़ाँ तो होगी
आज वो कुछ न सही कल को जवाँ तो होगी
वो जवाँ हो के अगर शोला-ए-जव्वाला बनी
वो जवाँ हो के अगर आतिश-ए-सद-साला बनी
ख़ुद ही सोचो कि सितम-गारों पे क्या गुज़रेगी
नज़्म
एक बात
अली सरदार जाफ़री