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एहसास | शाही शायरी
ehsas

नज़्म

एहसास

मुबीन मिर्ज़ा

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ख़्वाहिशों की मंज़िल पर
हसरतों के रस्ते में

दिलबरी के पर्बत पर
वहशतों की वादी में

बे-ख़ुदी के सहरा में
आगही के दरिया में

वक़्त के झमेले में
रोज़-ओ-शब के रेले में

दिल पे जो गुज़रती है
वो इसी हक़ीक़त का

इंकिशाफ़ करती है
हर मक़ाम-ओ-मंज़िल पर

आदमी अकेला है