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एहसास की रात | शाही शायरी
ehsas ki raat

नज़्म

एहसास की रात

मख़दूम मुहिउद्दीन

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मुझे डर है कि कहीं सर्द न हो जाए ये एहसास की रात
नर्ग़े तूफ़ान-ए-हवादिस के हवस की यलग़ार

ये धमाके ये बगूले सर-ए-राह
जिस्म का जान का पैमान-ए-वफ़ा क्या होगा

तेरा क्या होगा मिरे तार-ए-नफ़स
तेरा क्या होगा ऐ मिज़राब-ए-जुनूँ

ये दहकते हुए रुख़्सार
ये महकते हुए लब

ये धड़कता हुआ दिल
शफ़क़-ए-ज़ीस्त की पेशानी का रंगीं क़श्क़ा

क्या होगा
उड़ न जाए कहीं ये रंग-ए-जबीं

मिट न जाए कहीं ये नक़्श-ए-वफ़ा
चुप न हो जाए ये बजता हुआ साज़

शमएँ अब कौन जलाएगा सर-ए-शाम गुज़रगाहों में
दहर में लुत्फ़-ओ-अता कुछ भी नहीं

दहर में मेहर-ओ-वफ़ा कुछ भी नहीं
सज्दा कुछ भी नहीं नक़्श-ए-पा कुछ भी नहीं

मेरे दिल और धड़क
शाख़-ए-गुल

और महक और महक और महक