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यौम-ए-मई | शाही शायरी
yaum-e-may

नज़्म

यौम-ए-मई

सुरूर बाराबंकवी

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आज मई का पहला दिन है आज का दिन मज़दूर का दिन है
ज़ुल्म-ओ-सितम के मद्द-ए-मुक़ाबिल हौसला-ए-जम्हूर का दिन है

आज का दिन ये इल्म-ओ-हुनर का फ़िक्र-ओ-अमल की फ़त्ह-ओ-ज़फ़र का
आज शिकस्त-ए-ज़ुल्मत-ए-शब है आज फ़रोग़-ए-नूर का दिन है

सदियों के मज़लूम इंसाँ ने आज के दिन ख़ुद को पहचाना
आज का दिन है यौम-ए-अनल-हक़ आज का दिन मंसूर का दिन है

अपने लहू का परचम ले कर आज के दिन मज़लूम उठे थे
एक नए उनवाँ की रिवायत एक नए दस्तूर का दिन है

अब न कभी हम ज़ुल्म सहेंगे जब्र-ओ-सितम पे चुप न रहेंगे
एक नए एलान की साअ'त एक नए मंशूर का दिन है