मेरे महबूब देस की गलियो
तुम को और अपने दोस्तों को सलाम
अपने ज़ख़्मी शबाब को तस्लीम
अपने बचपन के क़हक़हों को सलाम
उम्र भर के लिए तुम्हारे पास
रह गई है शगुफ़्तगी मेरी
आख़िरी रात के उदास दियो
याद है तुम को बेबसी मेरी
याद है तुम को जब भुलाए थे
उम्र-भर के किए हुए वा'दे
रस्म-ओ-मज़हब की इक पुजारन ने
एक चाँदी के देवता के लिए
जाने इस कार-गाह-ए-हस्ती में
उस को वो देवता मिला कि नहीं
मेरी कलियों का ख़ून पी कर भी
उस का अपना कँवल खिला कि नहीं
आज-कल उस के अपने दामन में
प्यार के गीत हैं कि पैसे हैं
तुम को मालूम हो तो बतलाना
उस के आँचल के रंग कैसे हैं
मुझ को आवाज़ दो कि सुब्ह की ओस
क्या मुझे अब भी याद करती है
मेरे घर की उदास चौखट पर
क्या कभी चाँदनी उतरती है
नज़्म
दूर की आवाज़
मुस्तफ़ा ज़ैदी