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डूबते सूरज की सरगोशी | शाही शायरी
Dubte suraj ki sargoshi

नज़्म

डूबते सूरज की सरगोशी

सईद अहमद

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ढेर किरचियों के
आँख में हैं लेकिन

आईने नौहा
हर किसी क़लम की दस्तरस से बाहर

रौशनी के घर में
तीरगी का पत्थर

किस तरफ़ से आया
कौन है वो आख़िर

जो पस-ए-तमाशा मुस्कुरा रहा है
इक सवाल होती है

ज़िंदगी नगर की
सुर्ख़ियाँ ख़बर की खोजती है लेकिन

ख़्वाब के सफ़र की साअतों पे क़दग़न
सोच रहन-ए-सर है

नींद की सहर जो
क़र्या-ए-तमन्ना लूट ले गया

उस के नक़्श-ए-पा भी
चुन लिए हवा ने

मुंसिफ़ी के दाई
बे-यक़ीन मौसम बाँटते हैं घर घर

और हड्डियों के ना-तवाँ से पंजर
सुर्ख़ बत्तियों के ख़ौफ़ की सड़क पर

साइरन बजाती एक ना-गहानी
ता-अबद तआक़ुब

ख़त्म है कहानी