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दुख की आँखें नीली हैं | शाही शायरी
dukh ki aankhen nili hain

नज़्म

दुख की आँखें नीली हैं

मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी

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वो ऐसे रूठी है मुझ से
मुझे पास नहीं आने देगी

कहती है दूर हटो लेकिन
मुझे दूर नहीं जाने देगी

जब उस के पास मैं आता हूँ
क्या कहता हूँ कुछ याद नहीं

बस याद अगर है इतना है
इन आँखों में इस तकिए पर

कुछ आँसू हैं कुछ मोती हैं
या उन आँखों की झीलों में

इक कश्ती है कुछ तारे हैं
ये तारे हैं या जुगनू हैं

जिस सोफ़े पर मैं बैठा था
ये उस कमरे की खिड़की से

कैसे उड़ उड़ कर आए हैं
ये बादल कैसे छाए हैं

जब उस के पास मैं आता हूँ
कुछ बूँदें मेरे काँधे पर

टप टप गिरने लगती हैं
क्या कहता हूँ मैं ये याद नहीं

बस याद अगर है उतना है
जो बादल घिर घिर आए थे

सब बादल छटने लगते हैं
उन अच्छी आँखों में रौशन

रौशन रौशन रिम-झिम रौशन
आँसू हँसने लगते हैं