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दुआ | शाही शायरी
dua

नज़्म

दुआ

वर्षा गोरछिया

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मैं नज़्में नहीं कहती
मैं दुआएँ लिखती हूँ

दर्द की किर्चें चुनती हूँ
तेरे पैरों की उँगलियाँ सहलाती हूँ

माथे से भौं के बीच
एक चाँद तेरे नाम करती हूँ

होंठों पे अटके काँच के टुकड़े चूम कर
ख़्वाहिश कहती हूँ

तेरे बाएँ हिस्से पे हाथ रखकर
कुछ सनसनाहट अपनी नसों में भरती हूँ

और उँगली से आसमान पर
मैं तेरे लिए दुआएँ लिखती हूँ