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दुआ | शाही शायरी
dua

नज़्म

दुआ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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ये जब्र-ए-माह-ओ-साल में घिरी हुई ज़मीं मिरी गवाह है
नशात की अबद-कनार मंज़िलों में एक उम्र से मैं उन करीम और जमील साअतों का मुंतज़िर हूँ

जिन की बाज़-गश्त से मिरे वजूद की सदाक़तों का इंकिशाफ़ हो
ख़ुदा करे बशारतें सुनाने वाले ख़ुश-कलाम ताएरों की टोलियाँ

उफ़ुक़ से शाख़-ए-गुल तलक अलामत-ए-विसाल की लकीरें खींच दें
लहू की वुसअतों का इंकिशाफ़ हो

लहू की अज़्मतों का इंकिशाफ़ हो
बदन के रास्ते वजूद की सदाक़तों का इंकिशाफ़ हो