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दिया | शाही शायरी
diya

नज़्म

दिया

सलीम अहमद

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मिरे चारों तरफ़ हैं मेरे साए
ख़ुद अपनी तीरगी में घिर गया हूँ

दिए की तरह आधी रात को मैं
किसी ख़ाली मकाँ में जल रहा हूँ