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दिन दिवंगत हुए | शाही शायरी
din diwangat hue

नज़्म

दिन दिवंगत हुए

कुंवर बेचैन

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रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुए
रात घायल हुई दिन दिवंगत हुए

हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे
रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे

रोज़ जिन के हृदय में उतरते रहे
वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे

रोज़ जलते हुए आख़िरी ख़त हुए
दिन दिवंगत हुए

शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहे
नैन में ज्योति का दीप बाले रहे

और जिन के दिलों में उजाले रहे
अब वही दिन किसी रात की भूमी पर

एक गिरती हुई शाम की छत हुए
दिन दिवंगत हुए

जो अभी साथ थे हाँ अभी हाँ अभी
वे गए तो गए फिर न लौटे कभी

है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी
दिन कि जो प्राण के मोह में बंद थे

आज चोरी गई वो ही दौलत हुए
दिन दिवंगत हुए

चाँदनी भी हमें धूप बन कर मिली
रह गई ज़िंदगी की कली अध-खिली

हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली
हर तरफ़ शोर था और इस शोर में

ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए
दिन दिवंगत हुए