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धुँद की काएनात | शाही शायरी
dhund ki kaenat

नज़्म

धुँद की काएनात

कृष्ण मोहन

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जिस्म पत्ता है फैली रगें ख़्वाहिशें
रंजिशें काहिशें

मौत इक भूत है
ज़िंदगी मेघ-दूत

वो भी है इक धुआँ
ये भी है इक धुआँ इक हवा

इस धुएँ में ये पत्ता उड़े जा-ब-जा
इस धुएँ में ये पहुँचे न जाने कहाँ