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मुलाक़ात | शाही शायरी
mulaqat

नज़्म

मुलाक़ात

दाऊद ग़ाज़ी

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एक चौराहे पे सब लोग चले आते हैं
एक चौराहे पे मिलते हैं गुज़र जाते हैं

अन-गिनत ज़ाविए अफ़्कार के ले आते हैं
इन खिलौनों से वो अज़हान को बहलाते हैं

अपने कर्तब पे वो इठलाते हैं इतराते हैं
और मौहूम सी तस्कीन यूँही पाते हैं

एक चौराहे पे सब लोग चले आते हैं
एक चौराहे पे मिलते हैं गुज़र जाते हैं

उन में ख़ुश-कार भी हैं उन में रिया-कार भी हैं
उन में ग़म-ख़्वार भी हैं उन में जफ़ा-कार भी हैं

ख़ार-हा-ए-मेहन-ओ-दर्द के तुज्जार भी हैं
और गुल-हा-ए-मोहब्बत के ख़रीदार भी हैं

शो'बदा-गर भी हैं चालाक भी अय्यार भी हैं
और गर्दीदा-ए-मेहनत भी हैं फ़नकार भी हैं

उन में बेहोश भी हैं उन में जुनूँ-कार भी हैं
उन में दाना भी हैं बीना भी हैं होशियार भी हैं

एक चौराहे पे सब लोग चले आते हैं
एक चौराहे पे मिलते हैं गुज़र जाते हैं

हर मुसाफ़िर को मुलाक़ात ये रास आई है
इस मुलाक़ात से हस्ती ने जिला पाई है

इस मुलाक़ात ने इक रौशनी फैलाई है
लोग बढ़ते हैं तो तहज़ीब बढ़ा करती है

लोग लड़ते हैं तो तहज़ीब मिटा करती है
एक चौराहे पे सब लोग चले आते हैं

एक चौराहे पे मिलते हैं गुज़र जाते हैं