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दिसम्बर | शाही शायरी
december

नज़्म

दिसम्बर

नदीम गुल्लानी

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अभी फिर से फूटेगी यादों की कोंपल
अभी रग से जाँ है निकलने का मौसम

अभी ख़ुशबू तेरी मिरे मन में हमदम
सुब्ह शाम ताज़ा तवाना रहेगी

अभी सर्द झोंकों की लहरें चली हैं
कि ये है कई ग़म पनपने का मौसम

सिसकने सुलगने तड़पने का मौसम
दिसम्बर दिसम्बर दिसम्बर दिसम्बर