पानी की लय पे गाता
इक कश्ती-ए-हवा में
आया था रात कोई
सारे बदन पे उस के
लिपटे हुए थे शोले
होंटों से ओस बूँदें
पैहम गिरा रहा था
सरगोशियों के बादल
छाए हुए थे हर-सू
दरिया-ए-ख़ूँ रगों में
बे-ताब हो रहा था
मैं हो रहा था पागल!
नज़्म
दरिया-ए-ख़ूँ
शहरयार