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दरबारी मुग़न्नी | शाही शायरी
darbari mughanni

नज़्म

दरबारी मुग़न्नी

सईदुद्दीन

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मैं एक धुत्कारा हुआ
दरबारी मुग़न्नी हूँ

दरबार से धुत्कार दिए जाने से पहले
मेरे हल्क़ में सिन्दूर की एक पूरी शीशी

उलट दी गई है
अब मेरा गला

महज़ ग़िज़ा की नाली बन कर रह गया है
मुझे अपने गले के सोज़-ओ-साज़ से महरूम किए जाने से ज़ियादा अफ़्सोस

उस बात का है
कि मैं अपने मेदे में उतरी हुई अशरफ़ियाँ

मरवारीद और नीलम
शाही महल में थूक कर नहीं आया

उन सब ने मेरे मेदे में अपने लिए
कोई गुंजाइश सुर अलापना चाहूँ

तो ये अशरफ़ियाँ
मरवारीद और नीलम

मेरे मेदे में दहकने लगते हैं
जिस तश्तरी में मुझे

ये अशरफ़ियाँ मरवारीद और नीलम पेश किए जाते थे
अब उस तश्तरी में

महल के ख़्वाजा-सरा के पालतू कुत्ते को
रातिब दिया जाता है

जिस के मेदे में कोई चीज़
ज़ियादा देर तक नहीं टिकती

कभी कभी ये कुत्ता
ख़्वाजा-सरा के पैर चाटते चाटते

बादशाह पर भूँकने भी लगता है
काश मैं एक बार ही ऐसा कर सकता