किस तरह रेत के समुंदर में
कश्ती-ए-ज़ीस्त है रवाँ सोचो
सुन के बाद-ए-सबा की सरगोशी
क्यूँ लरज़ती हैं पत्तियाँ सोचो
पत्थरों की पनाह में क्यूँ है
आइना-साज़ की दुकाँ सोचो
अस्ल सरचश्मा-ए-वफ़ा क्या है
वज्ह-ए-बे-मेहरी-ए-बुताँ सोचो
ज़ौक़-ए-ता'मीर क्यूँ नहीं मिटता
क्यूँ उजड़ती हैं बस्तियाँ सोचो
फ़िक्र-ए-सुक़रात है कि ज़हर का घूँट
बाइ'स-ए-उम्र-ए-जावेदाँ सोचो
लोग मा'नी तराश ही लेंगे
कोई बे-रब्त दास्ताँ सोचो
नज़्म
दावत-ए-फिक्र
शकेब जलाली