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दार-उल-मकाफ़ात | शाही शायरी
dar-ul-makafat

नज़्म

दार-उल-मकाफ़ात

नज़ीर अकबराबादी

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है दुनिया जिस का नाँव मियाँ ये और तरह की बस्ती है
जो मंहगों को ये महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है

याँ हर-दम झगड़े उठते हैं हर-आन अदालत बस्ती है
गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो और किसी का मान रखे तो उस को भी अरमान मिले
जो पान खिला दे पान मिले जो रोटी दे तो नान मिले

नुक़सान करे नुक़सान मिले एहसान करे एहसान मिले
जो जैसा जिस के साथ करे फिर वैसा उस को आन मिले

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो और किसी की जाँ बख़्शे तो उस की भी हक़ जान रखे
जो और किसी की आन रखे तो उस की भी हक़ आन रखे

जो याँ का रहने वाला है ये दिल में अपने जान रखे
ये तुरत-फिरत का नक़्शा है इस नक़्शे को पहचान रखे

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो पार उतारे औरों को उस की भी पार उतरनी है
जो ग़र्क़ करे फिर उस को भी डुबकों डुबकों करनी है

शमशीर तबर बंदूक़ सिनाँ और नश्तर तीर नहरनी है
याँ जैसी जैसी करनी है फिर वैसी वैसी भरनी है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो इस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो ऊपर ऊँचा बोल करे तो उस का बोल भी बाला है
और दे पटके तो उस को भी कोई और पटकने वाला है

बे-ज़ुल्म-ओ-ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़बह कर डाला है
उस ज़ालिम के भी लोहू का फिर बहता नद्दी-नाला है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो मिस्री और के मुँह में दे फिर वो भी शक्कर खाता है
जो और तईं अब टक्कर दे फिर वो भी टक्कर खाता है

जो और को डाले चक्कर में फिर वो भी चक्कर खाता है
जो और को ठोकर मार चले फिर वो भी ठोकर खाता है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो और किसी को नाहक़ में कोई झूटी बात लगाता है
और कोई ग़रीब और बेचारा हक़ ना-हक़ में लुट जाता है

वो आप भी लूटा जाता है और लाठी-पाठी खाता है
जो जैसा जैसा करता है फिर वैसा वैसा पाता है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

जो और की पगड़ी ले भागे उस का भी ओर उचक्का है
जो और पे चौकी बिठलावे उस पर भी धोंस-धड़क्का है

याँ पुश्ती में तो पुश्ती है और धक्के में याँ धक्का है
क्या ज़ोर मज़े का जमघट है क्या ज़ोर ये भीड़-भड़क्का है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है

है खटका उस के हाथ लगा जो और किसी को दे खटका
और ग़ैब से झटका खाता है जो और किसी के दे झटका

चीरे के बीच में चीरा है और पटके बीच जो है पटका
क्या कहिए और 'नज़ीर' आगे है ज़ोर तमाशा झट-पटका

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है