रिफ़ाक़त के नशे में झूमते
दो सब्ज़ पत्तों ने
बहुत आहिस्ता से ताली बजाई
और कहा
देखो'' हसन-अब्बास!
इतनी ख़ूब-सूरत रुत में
कोई इस तरह तन्हा भी होता है
जो तुम इस तौर तन्हा हो''!?
ये कह कर दोनों इक दूजे से यूँ लिपटे
कि जैसे एक दिन तू मुझ से लिपटी थी
उसी लम्हे
मिरे होंटों पे तेरा शहद-आगीं
लम्स जाग उट्ठा
और उस गुम-गश्ता नश्शे को मैं होंटों पर सजाए
अपने कमरे में चला आया
कि दफ़्तर का बहुत सा काम बाक़ी था
नज़्म
छाजों बरसती बारिश के बाद
हसन अब्बास रज़ा