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छब्बीस जनवरी | शाही शायरी
chhabbis january

नज़्म

छब्बीस जनवरी

नज़ीर बनारसी

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ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी

सर पर बसंत घास ज़मीं पर हरी हरी
फूलों से डाली डाली चमन की भरी भरी

आई न तू तो सब की सुनूँगा खरी खरी
तुझ बिन उदास है मिरी खेती हरी-भरी

आ जल्द आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
घूँघट उलट रही है चमन की कली कली

शाख़ें तो टेढ़ी-मेढ़ी हैं सूरत भली भली
रंगीनियाँ हैं बाग़ में ख़ुशबू गली गली

शबनम से है कली की पियाली भरी भरी
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी

मुस्का रही है मुझ पे मिरे बाग़ की कली
आँखें दिखा रही है मुझे कल की छोकरी

ऐसा न हो कि फूल उड़ाएँ मिरी हँसी
अब तैरने लगी मिरी आँखों में जल-परी

आ जल्द आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
काँटे हों चाहे फूल हों फ़स्ल-ए-बहार के

पाले हैं दोनों एक ही पर्वरदिगार के
हम भारती शिकार हैं अपने ही वार के

ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी
धरती पे आ कि आ गई छब्बीस जनवरी