एक मच्छर काग़ज़ पे लिखी तहरीर का ख़ून चूस रहा है
तुम नहीं देखते
कैसे कोई मच्छर अहल-ए-मेहनत की जिद्द-ओ-जहद का ख़ून चूस कर अपने हराम-ओ-जूद का मुज़ाहिरा करता है
कर सको तो करो
ये फ़ज़ा इतनी तअफ़्फ़ुन क्यूँ है
मैं तो हर जगह ठहरा हुआ ग़लत ख़ून देख रही हूँ

नज़्म
चंद सतरें
इंजिला हमेश