राह न देखो सूरज की
कल मैं ने अपने हाथों से
उस की लाश जलाई है
सुब्ह न होगी और न उजाला फैलेगा
रात हमेशा रात रहेगी
रात की तारीकी को ग़नीमत जान के निकलो चल निकलो
अपने शिकस्ता ख़्वाब के टुकड़े
साथ में ले कर चल निकलो
राह न देखो सूरज की
नज़्म
चल निकलो
आदिल मंसूरी