रौशनी में अपनी
अजीब सी कशिश लिए
ये गोल दायरा
अपने वजूद का
एहसास दिलाता है
और
मुझ से
पूछता है
तुम
कौन हो
क्या पहचान है तुम्हारी

नज़्म
चाँद
शीरीं अहमद
नज़्म
शीरीं अहमद
रौशनी में अपनी
अजीब सी कशिश लिए
ये गोल दायरा
अपने वजूद का
एहसास दिलाता है
और
मुझ से
पूछता है
तुम
कौन हो
क्या पहचान है तुम्हारी