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चाँद-रात | शाही शायरी
chand-raat

नज़्म

चाँद-रात

महमूद सना

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रात की हवेली से
चाँद जब निकलता है

आँख के दरीचे से
आरज़ू महकती है

रौशनी मोहब्बत की
चार-सू बिखरती है

जिस्म के जज़ीरे पर
रत-जगा उतरता है

रेज़ा रेज़ा करता है