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jinhen main DhunDhta tha aasmanon mein zaminon mein wo nikle mere zulmat-KHana-e-dil ke makinon mein
नज़्म
महमूद सना
रात की हवेली से चाँद जब निकलता है आँख के दरीचे से आरज़ू महकती है रौशनी मोहब्बत की चार-सू बिखरती है जिस्म के जज़ीरे पर रत-जगा उतरता है रेज़ा रेज़ा करता है