मेरे चारों तरफ़
दायरा दायरा
इक फ़ुसूँ हयात तरह-दार है
ज़िंदगी गामज़न है उसी नहज पर
सच की तरवीज में
और लटकी हुई
सर पे तलवार है
नज़्म
सच
याक़ूब तसव्वुर
नज़्म
याक़ूब तसव्वुर
मेरे चारों तरफ़
दायरा दायरा
इक फ़ुसूँ हयात तरह-दार है
ज़िंदगी गामज़न है उसी नहज पर
सच की तरवीज में
और लटकी हुई
सर पे तलवार है