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सेंसर्शिप | शाही शायरी
censorship

नज़्म

सेंसर्शिप

साक़िब रज़्मी

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छुपाएँगे किस तरह अहल-ए-चमन से
वो रूदाद-ए-ग़म

सकिनान-ए-क़फ़स की
यहाँ रस्म-नामा बरी

गुलिस्ताँ की हवाओं को सौंपी गई है
गुल-ओ-बर्ग हैं

राज़-दाँ दास्तान-ए-सितम के