छुपाएँगे किस तरह अहल-ए-चमन से
वो रूदाद-ए-ग़म
सकिनान-ए-क़फ़स की
यहाँ रस्म-नामा बरी
गुलिस्ताँ की हवाओं को सौंपी गई है
गुल-ओ-बर्ग हैं
राज़-दाँ दास्तान-ए-सितम के

नज़्म
सेंसर्शिप
साक़िब रज़्मी
नज़्म
साक़िब रज़्मी
छुपाएँगे किस तरह अहल-ए-चमन से
वो रूदाद-ए-ग़म
सकिनान-ए-क़फ़स की
यहाँ रस्म-नामा बरी
गुलिस्ताँ की हवाओं को सौंपी गई है
गुल-ओ-बर्ग हैं
राज़-दाँ दास्तान-ए-सितम के