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कथार्सिस | शाही शायरी
Catharsis

नज़्म

कथार्सिस

दानियाल तरीर

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चीख़ना है मुझे
इस ज़मीं पर

नहीं
आसमाँ में

नहीं
इन वजूदों की ला में

ख़ला में
मुझे चीख़ना है

अना की अना में
मगर किस सज़ा में

कि जीवन बिताया है इस कर्बला में
मुझे चीख़ना है ख़ला में

जहाँ अपनी चीख़ें मैं ख़ुद ही सुनूँ
फ़ैसला ख़ुद करूँ

इन वजूदों को क्या मैं जियूँ या मरूँ