एक पतिंगा
तन्हा तन्हा!
शाम ढले इस फ़िक्र में था
ये तन्हाई कैसे कटेगी?
रात हुई
और शम्अ जली
मग़्मूम पतिंगा झूम उठा
हँसते हँसते रात कटेगी
सुब्ह हुई
और सब ने देखा
राख पतिंगे की उड़ उड़ कर
शम्अ को हर सू ढूँड रही थी
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नज़्म
भरोसा
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
क़तील शिफ़ाई
एक पतिंगा
तन्हा तन्हा!
शाम ढले इस फ़िक्र में था
ये तन्हाई कैसे कटेगी?
रात हुई
और शम्अ जली
मग़्मूम पतिंगा झूम उठा
हँसते हँसते रात कटेगी
सुब्ह हुई
और सब ने देखा
राख पतिंगे की उड़ उड़ कर
शम्अ को हर सू ढूँड रही थी