छुट्टी की घंटी बजते ही
चप्पल मेरी नेकर की जेबों में होती थी
बस्ता कंधे पर फेंके
तख़्ती लहराता भाग निकलता था
फिर ये घोड़े-शोड़े मेरे आगे बच्चे होते थे
पर मेरे बच्चे
इल्म की डुगडुगी
जाहिल के हाथ आ जाए
तो बस्ते भारती हो जाते हैं
इतने भारी हो जाते हैं
छुट्टी की घंटी से घुटने बज उठते हैं
फिर सर बढ़ जाते हैं
क़द छोटे रह जाते हैं
और इंसान का बच्चा घोड़ों से डरने लगता है
नज़्म
भारी बस्ता
हुसैन आबिद