देखो तुम गिनती नंबरों के हिसाब
किताब में मत जाओ
सब दिखावा छलावा सा है
मैं तो अभी भी वही स्टापू खेलने की बारी
के इंतिज़ार में हूँ
घर पर पैर पटकती नन्ही बच्ची सी
मोटे मोटे आँसू लिए कोने में बैठी सी हूँ
बारिशों में छप छप कर मिट्टी में सने पाँव
से बे-परवाह हवा सी हूँ
कोहरे से भरे शीशे पर कुछ उल्टा कुछ
सीधा कुछ सच्चा झूटा लिखती मिटाती
सी हूँ
ख़याल में
अपने इस केसरी प्रिंटेड फूलों से भरे फ़िराक़ में
तितली के पीछे दौड़ लगाती
बावली सी हो
तुम बार बार जन्म-दिन पर काल कर
उम्र का हवाला न दो
मेरे लिए तो दिल अभी भी रूह की बाएँ तरफ़ है
जो बीसवीं साल में था शायद

नज़्म
बे-परवाह उम्र
दिव्या महेश्वरी