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बयाज़ें खो गई हैं | शाही शायरी
bayazen kho gai hain

नज़्म

बयाज़ें खो गई हैं

शीन काफ़ निज़ाम

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बयाज़ें
जिन में

अन-देखे परिंदों के
पते लिक्खे

बयाज़ें!
जिन में

हम ने फूलों की
सरगोशियाँ लिख्खीं

पहाड़ों के रुमूज़ और
आबशारों की ज़बाँ लिक्खी

बयाज़ें!
जिन के सीने में

समुंदर और सूरज की अदावत के थे अफ़्साने
परिंदे और पेड़ों के

रक़म थे
बाहमी रिश्ते

हमारे इर्तिक़ा की उलझनें
जिन से मुनव्वर थीं

बयाज़ें खो गई हैं
अब लुग़त हम से परेशाँ है